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भारतीय चित्रकला है भावो की अभिव्यक्ति

भारतीय चित्रकला है भावो की अभिव्यक्ति !
भारतीय चित्रकला को समझने के लिये अापके मन में भावों का होना ज़रूरी है । क्योंकि बिना भाव के भारत की कोई भी कला व्यक्त नहीं की जा सकती । यह भाव ध्यान करने से आता हैं । साधना में डूबने से आता हैं । मन की पवित्रता से आता है। चूँकि मैं एक चित्रकार हूँ इसलिए चित्रकला की बात कर रहा हूँ । जब भी कोई कलाकार किसी काग़ज़ , कैनवास या फलक पर रेखांकन करता है तो वो उसे ख़ाली काग़ज़ पर पहले से ही चित्रित हुई नज़र आती है । उसे उस अदृष्य रेखांकन पर क़लम चलानी होती हैं ओर चित्र नज़र आने लगता हैं । जिन लोगों में भाव नहीं जगता वो अपनी मौलिक कृति का सर्जन नहीं कर सकते। जो कलाकार भाव के साथ शास्त्रों का , परम्पराओं का ,लोककलाओ का अध्ययन कर सर्जन करता है तो उसकी कृति दिर्धकाल तक िजन्दा रहती हैं । चाहे वो अजन्ता की कला हो, पारम्परिक कला हो या कोई भी ललितकला क्यों न हो । अमेरिका में कला से जुड़े मेरे मित्र मुझसे कृष्णलीलाओ से संबंधी चित्र ख़रीदा करते थे वो एक बार चाइना गये ओर वहाँ के कलाकारों से भी भगवान कृष्ण के चित्र बनाने हेतु ओर्डर दिया जो कि मेरी कलाकृतियों के मुक़ाबले बहुत ही सस्ते में बना रहे थे । उन्होंने मुझसे कलाकृतियाँ लेना बन्द कर दिया । मैंने भी उनसे इसकी वजह नहीं पुछी। लम्बे समय के बाद जब वो मिले तो उन्होंने मेरी पेन्टिग्स की बहुत तारिफ़ की ओर कहा कि चाइना के आर्टिस्ट द्वारा बनाये गये भगवान कृष्ण के चित्र भगवान के भाव तो नज़र ही नहीं आ रहे थे वो तो बस निला आदमी लग रहा था । तब मैंने कहा कि चाइना के कलाकार कृष्ण जी के बारे में कुछ पता नहीं होगा ओर यदि पता कर भी लिया हो तो समर्पण के भाव कहाँ से लाता इसलिये वो भगवान कृष्ण को एक व्यक्ति के रूप में ही चित्रित कर पाया। हम जब कृष्ण जी को चित्रित करते है तो भगवान के भाव स्वतः ही उभरने लगते हैं ओर कलाकृति पुजनीय बन जाती है जो भक्तिभाव से सम्भव है ।इसलिये भारतीय कलाओं में भाव की अभिव्यक्ति नज़र आती हैं
चित्रकार रामू रामदेव
लन्दन ,२५-८-२०१४

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